रविवार, जुलाई 30, 2017

गठबंधन का तो स्वभाव ही खुलना और बँधना है...

ये बंधन तो प्यार का बंधन है, जन्मों का संगम है
यह गीत के बोल हैं करण अर्जुन फिल्म के जो इस वक्त कार में रेडिओ पर बज रहा है.
सोचता हूँ कि कितने ही सारे बंधन हैं इस जीवन में. विवाह का बंधन है पत्नी के साथ. प्यार भी ढेर सारा और कितना ही टुनक पुनक हो ले, लौट कर शाम को घर ही जाना होता है और फिर जिन्दगी उसी ढर्रे पर हंसते गाते चलती रहती है . गाने की पंक्ति बज रही है... विश्वास की डोर है ऐसी, अपनों को खीच लाती है. विवाह का बंधन इतना तगड़ा होता है कि फेवीकोल वाले भी इसे अपने इस्तेहार में जोड़ की ताकत दिखाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. रिटर्न गिफ्ट में शादी डाट कॉम वाले फेवीकोल से मजबूत रिश्तों की दुहाई देते हैं.
रिश्तों के बंधन है. कर्तव्यों और दायित्वों को निभाने का बंधन है. समाज के बंधन हैं जो आपको गलत कार्य करने से रोकते हैं वरना समाज को क्या मूँह दिखायेंगे वाले. 
मित्रता के बंधन हैं. अपने वचनों और वादों को निभाने का बंधन है. मगर ये बंधन भी उन्हीं के लिए हैं जो इन्हें माने. वरना तो इन बंधनों की हालत भी गाँधी जी के समान ही हो ली है. जो इन्हें मान्यता देता है वह राष्ट्रपिता कह कर भारत की आजादी में उनके योगदान और अहिंसा को नमन करके श्रृद्धावनत हो जाता है, वहीं न मानने वाले कहते हैं कि गाँधी न होते तो आज भारत की तस्वीर दूसरी होती. भारत का कभी बटवारा न होता. नेहरु प्रधानमंत्री न होते बल्कि पटेल होते ..आज भारत जो २०१४ के बाद से बनना शुरु हुआ है वो १९४७ से बन रहा होता. ये दूसरी बात है कि क्या बन रहा है वो दिखता तो इतने सालों में भी नहीं, यह तय है.
ठीक ऐसे ही इन बंधनों से मुक्त संपूर्ण नेताओं की जमात है, जैसे आर टी आई से लेकर तमाम कानून, परोक्ष या अपरोक्ष, मगर इन पर लागू नहीं होते हैं.
वादों को जुमलों का नाम देकर उसके बंधन से मुक्त होना भी इसी मुक्ति मार्ग का नया प्रचलन है मगर मुक्त तो ये सर्वदा से थे ही.
इस जमात में जो सबसे प्रचलित बंधन है उसे गठबंधन का नाम दिया गया है. नाम किसने दिया है यह तो नहीं मालूम मगर संधि विच्छेद विशेषज्ञ इसे गांठ वाला बंधन बताते हैं. सुविधानुसार जब मरजी हुई और जिससे सत्ता में काबिज होने का अरमान पूरा होता दिखा, उससे गांठ बांध ली. हो गया गठबंधन और बन गये सत्ताधीष. जब लगा कि अब सामने वाली की अपेक्षायें बढ़ती जा रही हैं और उसे पूरा करना संभव न हो पायेगा तो गाँठ खोल कर दूसरे को लुभा लाये और उससे गठबंधन कर लिया और पहले वाले से खत्म. मुद्दा सत्ता बनी रही...गाँठ का तो स्वभाव ही खुलना और बँधना है, इसमें ये बेचारे क्या करें.
जैसा कि पहले ही बता दिया गया है ये जमात समस्त बंधनों से मुक्त है अतः इन्हें न तो जनमत के बंधन से कुछ लेना देना है और न ही किस मूँह से वापस उसी जनता के बीच वापस जायेंगे, वाली शरम के बंधन से कुछ लेना देना है.
कुछ रोज पहले जिसको सामने तो क्या, पोस्टर पर देखना भी मंजूर न था. जिसे सुबह शाम धोखेबाज करार दे रहे थे, आज एकाएक उसी से गाँठ बाँध ली. बस किसी भी तरह, सत्ता पर काबिज रहें.
कभी कभी लगता है कि जनता के बदले तोते से पर्चियाँ निकलवा कर प्रत्याशी चुन लिया जाना चाहिये और फिर गठबंधन गठबंधन खेल कर सरकार बना ली जाना चाहिये. जब जनता की मरजी का कुछ होना ही नहीं है तो उनका समय, चुनाव की तामझाम, लुभावने वादों से नाहक सपनों के संसार की उम्मीदें, बेइंतहा पैसा आदि व्यर्थ क्यूँ गंवाना? न ईवीएम में गड़बड़ी का चार्ज लगेगा, न घपलेबाजी का और न ही हैकाथन करवाने की झंझट मोल लेना पड़ेगी..
हम तो सिर्फ उपाय ही बता सकते हैं भलाई के लिए अतः बता दिया. करना धरना तो उन्हीं को है मगर हमारे बताये उपाय और उनकी अब तक की जुगत (वे इसे चाणक्य निती पुकारते हैं) देख कर मन में एक संशय जाग उठा है कि अगर तोते ट्रेन्ड करके ले आये तब तो बस उन्हीं की पर्चियाँ खींचेगा...और विपक्षी चीखेंगे कि तोताथन करवाओ जी..सब के सब तोते भी इनसे मिले हुए हैं...
तब पहली बार तोता और नेता का गठबंधन यह विश्व देखेगा...
विश्वगुरु यूँ ही थोड़े न कहलायेंगे.
-समीर लाल ’समीर’
    
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के रविवार ३० जुलाई के अंक में:

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5 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

राजनीति किसी की सगी नहीं ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (31-07-2017) को "इंसान की सच्चाई" (चर्चा अंक 2682) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन तुलसीदास जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

एकदम मौलिक आइडिया - हर्रा लगे न फिटकरी रंग आए चोखा !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सही आईडिया दिया आपने. वैसे अब गठबंधन का नाम मौका बंधन रख देना चाहिये.
रामराम
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