शनिवार, अप्रैल 08, 2017

कलयुग का सेल्फी युग


जैसे एक आदमी में होते हैंं कई आदमी, उसी तरह एक युग में होते हैं कई युग.
कलयुग के इस सेल्फी युग में जब व्यक्ति फोन खरीदने निकलता है तब उसमें फोन की नहीं, उस फोन में लगे कैमरे की खूबियाँ देखता है.. फोन की साऊन्ड क्वालिटी में भले ही थोड़ी खड़खड़ाहट हो, चाहे जगह जगह सिगनल लूज हो जायें.. मगर कैमरे की रिजल्ट चौचक होना चाहिये. यहाँ चौचक से यह तात्पर्य नहीं है कि तस्वीर की डीटेल एकदम विस्तार से दिखाये. अच्छे और चौचक रिजल्ट वाले कैमरे का यहाँ अर्थ है कि हम भले ही सच में कैसे भी दिखते हों, फोटो में कैमरा हमें सलमान और पत्नी को कटरीना से बेहतर दिखाये. बाकी की सारी डीटेल विस्तार से छिपा ले जाये.
पूछने पड़ता है कि पहले साफ साफ बताओ कि फोन चाहिये कि कैमरा? यह वैसा ही है जैसे इन्सान चुनता तो अपना नेता है मगर उसे मिलता फकीर है. और फकीर भी ऐसा..जिसके सेल्फी शौक के चलते तो कई बार सेल्फी भी सोचती होगी अगर ये न होते तो मेरा क्या होता?  
सेल्फी का माहौल ऐसा चला कि सेल्फी खींचना एक विधा हो निकली. फोटो स्टूडियो खुल गये सेल्फी खींचने वाले..अपना अटपटा सा विज्ञापन करते कि हमारे यहाँ नेचुरल सेल्फी खींची जाती है..बिना यह सोचे कि नेचुरल चाहता कौन है? लोग तो अपने अच्छे खासे चेहरे को पाऊट बना बना कर बन्दर सा कर लेते हैं..उस पर से फोटो शॉप फोन में ही..कभी कुकर जुबान लगा कर तो कभी सींग लगा कर.
ग्रुप टूर की बस से उतरे लोग, हर पर्यटन स्थल के फेमस प्वाईंटस पर कतारबद्ध सेल्फी खींचने के लिए भीड़ लगाये खड़े हैं..दूर से देखो तो भेद कर पाना मुश्किल हो जाये कि सेल्फी खींचने वालों की कतार है या नोट बन्दी के समय वाली एटीएम की कतार है या अच्छे दिनों का इन्तजार वालों की..यहाँ भी संभावना वही कि जब तक नम्बर आये, बस चलने का समय हो गया..जो सेल्फी खींच पाया उसके चेहरे पर वही विजयी भाव जैसे उस वक्त जो नोट निकाल लेता था मशीन में नोट खत्म होने के पहले उसके चेहरे पर हुआ करता था.
लम्बी लम्बी सेल्फी स्टिक निकल पड़ी हैं..हाथ का विस्तार सीमित है..लट्ठ (स्टिक) का असीमित..शायद इसी लिए लठेतों से लोग डरते हैं. स्टिक दूर से सेल्फी लेगा..मतलब की ज्यादा कवरेज..कवरेज का जमाना है. जितना ज्यादा कवरेज, उतना सफल व्यक्तित्व.
बुजुर्ग परिशां दिखे..कि यह तो हद हुई कि दादी मर गई और बंदा उनकी डेथ बॉडी के साथ सेल्फी उतार कर फेस बुक अपडेट कर रहा है..है तो हद ही मगर उससे कम..जहाँ बंदें को बचाने के बदले उसकी आत्म हत्या की कोशिश को अपने बैकग्राऊण्ड में कैच कर शेयर कर देने की होड़ मची हो.
आज का इन्सान वक्त की महत्ता को अहसासता नहीं...आज का इन्सान गुलाब की महक को महकता नहीं..आज का इन्सान किसी के दर्द से गमजदा होता नहीं..आज का इन्सान उन्हें कैद करता है अपने फोन के कैमरे के माध्यम से..अपनी सेल्फी के साथ.....मात्र वक्त के साथ वो लम्हे बाँटने के लिए जो उसने खुद मिस कर दिये सेल्फी खींच कर बांटने में...बिना उन्हें अहसासे..
न जाने किस ओर ले जायेगा ये सेल्फी युग इस युग को..इसलिए आज एक सेल्फी खींच लेते हैं कि कल काम आयेगी आज को परिभाषित करने के लिए...

-समीर लाल समीर’   
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#जुगलबंदी
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2 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - राहुल सांकृत्यायन जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

सेल्फ-सेंटर्ड होना ,आत्मकेन्द्रित हो कर सबसे दूर हो जाना आज के युग की विशेषता है .