रविवार, दिसंबर 04, 2016

आज मौसम बड़ा..बेईमान है बड़ा



प्रकृति प्रद्दत मौसमों से बचने के उपाय खोज लिये गये हैं. सर्दी में स्वेटर, कंबल, अलाव, हीटर तो गर्मी में पंखा, कूलर ,एसी, पहाड़ों की सैर. वहीं बरसात में रेन कोट और छतरी. सब सक्षमताओं का कमाल है कि आप कितना बच पाते हैं और मात्र बचना ही नहीं, सक्षमतायें तो इन मौसमों का आनन्द दिलवा देती है. अमीर एवं सक्षम इसी आनन्द को उठाते उठाते कभी कभी सर्दी खा भी जाये या चन्द बारिश की बूँदों में भीग भी जायें, तो भी यह सब सक्षमताओं के चलते क्षणिक ही होता है. असक्षम एवं गरीब मरते हैं कभी लू से तो कभी बाढ़ में बह कर तो कभी सर्दी में ठिठुर कर.

कुछ मौसम ऐसे भी हैं जो मनुष्य ने बाजारवाद के चलते गढ लिये हैं. इनका आनन्द भी सक्षमतायें ही उठाने देती है. इसका सबसे कड़क उदाहरण मुहब्बत का मौसम है जिसे सक्षमएवं अमीर वर्ग वैलेन्टाईन डे के रुप में मनाता है फिर इस डे का मौसम पूरे फरवरी महीने को गुलाबी बनाये रखता है. फरवरी माह के प्रारंभ में अपनी महबूबा संग गिफ्ट के आदान प्रदान से चालू हो कर वेलेन्टाईन दिवस पर इजहारे मुहब्बत की सलामी प्राप्त करते हुए फरवरी के अंत तक यह अपने नियत मुकाम को प्राप्त हो लेता है.

रेडियो पर गीत बज रहा है...’आज मौसम बड़ा..बेईमान है बड़ा..आज मौसम...’

बेईमानी का मौसम? फिर अन्य मौसमों से तुलना करके देखा तो पाया कि इसे भी अमीर एवं सक्षम एन्जॉय कर रहे हैं. इससे बचने बचाने के उनके पास मुफीद उपाय भी है और कनेक्शन भी. कभी कभार बड़ा बेईमान पकड़ा भी जाये तो क्या? कुछ दिनों में सब रफा दफा और फिर उसी रफ्तार से बेईमानी चालू. इस बीच कुछ दिन लन्दन जाकर ही तो रहना है या अगर किसी सक्षम को जेल जाना भी पड़ा तो वहाँ भी उनके लिए सुविधायें ऐसी कि मानो लन्दन घूमने आये हों. मरता इस मौसम में असक्षम ही है जैसे पटवारी, बाबू आदि की अखबारों में खबर आती है कि २००० रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ाये. वे जेल की हवा तो खाते ही खाते हैं, साथ ही नौकरी से भी हाथ धो बैठते हैं. उनके पास खुद को बचाने के न तो कनेक्शन होते हैं और न ही ऊँचे ओहदे वाले वकील. इसका कतई यह अर्थ न लगायें कि उन्होंने गलत काम नहीं किया बात मात्र सजा के अलग अलग मापदण्ड़ो की है.

इधर एकाएक नया सा मौसम सुनने में आ रहे हैं- देशभक्ति का मौसम.

इस मौसम का हाल ये है कि जो हमारे साथ में है वो देशभक्त और जो हमारा विरोध करेगा वो देशद्रोही? देश भक्ति की परिभाषा ही इस मौसम में बदलती जा रही है. देशभक्ति भावना न होकर सर्टीफिकेट होती जा रही है. सर्टिफाईड देशभक्त बंदरटोपी पहने, हर विरोध में उठते स्वर को देशद्रोह घोषित करने में मशगुल हैं. सोशल मीडिया एकाएक देशभक्तों और देशद्रोहियों की जमात में बंट गया है.

भय यह है कि कल को यह देशभक्ति का मौसम भी अमीरों और सक्षम लोगों के आनन्द का शगल बन कर न रह जाये और गरीबों और असक्षमों को फिर इस मौसम की भी मार सहना पड़े.

रेडियो पर गाना अब भी बज रहा है..आने वाला कोई तूफान है ..कोई तूफान है.. आज मौसम है बड़ा...’

-समीर लाल ’समीर’  Indli - Hindi News, Blogs, Links

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-12-2016) को "फकीर ही फकीर" (चर्चा अंक-2547) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

PRAN SHARMA ने कहा…

Aane Waalaa Hai Toofan - Khoob Kahaa Hai Aapne rochak Andaz mein .

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

तभी तो कहा है समरथ को नहिं दोष गुसाईं -समर्थ है तो बचाव का कोई न कोई उपाय निकाल ही लेगा .

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सतीक । कहना जरूरी है ।